Saturday, October 29, 2011

Ek khoobsurat or jazbaati ghazal by janaab Mayank awasthi sahab

Taron Se Aur Baat me kamatar Nahin Hoon Main
Juganoo Hun Isliye Ki falaq Par nahin Hoon Main

Sadmon Ki barishein Mujhe Kuchh To Ghulayengi
Putala Hun Khaq Ka Koi Patthar Nahin Hoon Main

Dariya-e Gham Me Burf Ke Tode Ki Shaql Me
Muddat Se Apane Qad Ke barabar Nahin Hoon Main

Uska Khayal Uski Zubaan Uske Tazkire
Uske Qafas Se Aaj Bhi Bahar nahin Hoon Main

Main Tishnagee Ke shahar Pe TukaDaa hoon Abra Ka
Koi Gila Nahin Ki Samander Nahin Hoon Main

Takara ke aaine se mujhe Ilm Ho Gaya
Kyon Aaine Ki Kirch Se Badhakar Nahin Hoon Main

Kyoon Zahar zindagi Ne Pilaaya mujhe Mayank
Wo Bhee to janatee Thi Ke Shanker Nahin Hoon main

Umda ghazal by Janaab Mohammad Azam sahab (Bhopal)

Jo ham se roz baDi khush dili se milte haiN
MuseebatoN meN wahi be-rukhi se milte haiN

Wo seedhe muNh nahiN karte haiN baat bhi ghar meN
Magar khuloos se baahar sabhi se milte haiN
...
Tunak mizaaj hai,aashufta sar hai ,khabti hai
Laqab kuchh aise hameN shayeri se milte haiN

Junoon,wahshateN, be-khaabiyaN,sanak ,sauda
Maraz kuchh aise hameN aashiqi se milte haiN

Talaash aaj bhi insaan ki hameN hai bahut
Agarche roz hi ham aadmi se milte haiN

Ata to aap hi karte haiN har khushi lekin
Tamaam gham bhi hameN aap hi se milte haiN

Ye un ka tarz-e-taghaful bhi khoob hai 'azam'
k jaise roz kisi ajnabi se milte haiN

Monday, August 29, 2011

Ghazal by Javed akhtar ,......

हमसे दिलचस्प कभी सच्चे नहीं होते है
अच्छे लगते है मगर अच्छे नहीं होते है

चाँद में बुढ़िया, बुजुर्गों में खुदा को देखें
भोले अब इतने तो ये बच्चे नहीं होते है

कोई याद आये हमें, कोई हमे याद करे
और सब होता है, ये किस्से नहीं होते है

कोई मंजिल हो, बहुत दूर ही होती है मगर
रास्ते वापसी के लम्बे नहीं होते है

आज तारीख[1] तो दोहराती है खुद को लेकिन
इसमें बेहतर जो थे वो हिस्से नहीं होते है |

Tuesday, August 16, 2011

Ghazal by me - Shariq siddiqui

ye meri ab tak ki doosri ghazal hai ........or pehla sher kisi khas ke liye hai ...


Mila hu ik ghazal jesi ....pari se.

...mohabbat ho gayi he shayari se.



jo gham paye he apni zindagi se.
byaan sab kar raha hu shayari se.



bahut gehra he ab shayad na toote.
taalluq gham ka meri ....zindagi se .



wo surat he ke shayad toot jaye.
taalluq aadmi ka ........aadmi se.



diye jo tum karoge din me roshan.
rahoge door shab bhar roshni se.



suna he gham bhi he naimat khuda ki.
mujhe manzoor he phir ye .khushi se.



main tumko chahta tha mil gaye tum.
main maangu or ab kya ...zindagi se.



dewanepann ki seema todd dunga.

mera wada he ye ab ....ashiqui se .

Tuesday, August 9, 2011

Ghazal by Manoj azhar sahab - Thakudwara

~~~~
यूँ तो ग़म की घटा ज़रा सी रहती है ,
बूंदा-बांदी . . .अच्छी-ख़ासी रहती है !

...ज़ख्म-ज़ख्म सौ चाँद उभरते रहते हैं ,
अपनी हर शब पूरनमासी रहती है !

तेरे शहर के सब मंज़र तो ताज़ा हैं ,
दिल की हालत बासी-बासी रहती है !

जिस्म का दरिया रूह से पूछा करता है..
''तू क्यूँ इतनी प्यासी-प्यासी रहती है?''

सबको खुश रखना इतना आसान नहीं ,
बड़े दिलों में . . . . .बड़ी उदासी रहती है !
.

- मनोज अज़हर.

Hello viewers

Khumaar sahab ki dil ko choo lene wali ghazale

MaiN sach kahooN to KHUMAR sahab se meri waaqfiyat kal hi hui hai aur uske baad mujhe behad ta'jjub aur hairat hui ki abhi tak maiN unke lajawab kalaam se mahroom kaise rah gaya, aaj maiN KHUMAR sahab ka kalaam paDhke dil se unka fan ho gaya hooN aur mujhe fakhr hota hai kya ghazab ki riwaayeti shaa'iri hai unki aur kya andaaz-e-bayaaN hai, aur tarannum aisa ki seedhe dil ki gahraaiyoN meiN utar ke halchal paida kar de. to lijiye pesh-e-khidmat haiN KHUMAR sahab ki chuninda ghazleiN:.


1--

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे

दो गुनहगार ज़हर खा बैठे


हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे

तीर मारे थे तीर खा बैठे


आंधियो जाओ अब आराम करो

हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे


जी तो हल्का हुआ मगर यारो

रो के हम लुत्फ़-ऐ-गम बढ़ा बैठे


बेसहारों का हौसला ही क्या

घर में घबराए दर पे आ बैठे


जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम

सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे


हम रहे मुब्तला-ऐ-दैर-ओ-हरम

वो दबे पाँव दिल में आ बैठे


उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान

रह गए सारे बावफ़ा बैठे


हश्र का दिन है अभी दूर 'ख़ुमार'

आप क्यों जाहिदों में जा बैठे

------------------------------



2-------------------------------------

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही

जज़्बात में वो पहले-सी शिद्दत नहीं रही


सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा

दिल पर वो धड़कनों की हुक़ूमत नहीं रही


पैहम तवाफ़े-कूचा-ए-जानाँ के दिन गए

पैरों में चलने-फिरने की ताक़त नहीं रही


चेहरे की झुर्रियों ने भयानक बना दिया

आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही


कमज़ोरी-ए-निगाह ने संजीदा कर दिया

जलवों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही


अल्लाह जाने मौत कहाँ मर गई 'ख़ुमार'

अब मुझको ज़िन्दगी की ज़रूरत नहीं रही



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3-----------------------------------


हिज्र[1] की शब[2] है और उजाला है

क्या तसव्वुर[3] भी लुटने वाला है


ग़म तो है ऐन ज़िन्दगी लेकिन

ग़मगुसारों ने मार डाला है


इश्क़ मज़बूर-ओ-नामुराद सही

फिर भी ज़ालिम का बोल-बाला है


देख कर बर्क़[4] की परेशानी

आशियाँ[5] ख़ुद ही फूँक डाला है


कितने अश्कों को कितनी आहों को

इक तबस्सुम[6] में उसने ढाला है


तेरी बातों को मैंने ऐ वाइज़[7]

एहतरामन हँसी में टाला है


मौत आए तो दिन फिरें शायद

ज़िन्दगी ने तो मार डाला है


शेर नज़्में शगुफ़्तगी मस्ती

ग़म का जो रूप है निराला है


लग़्ज़िशें[8] मुस्कुराई हैं क्या-क्या

होश ने जब मुझे सँभाला है


दम अँधेरे में घुट रहा है "ख़ुमार"

और चारों तरफ उजाला है

शब्दार्थ:

1. ↑ जुदाई
2. ↑ रात
3. ↑ कल्पना
4. ↑ बिजली
5. ↑ घर , आशियाना
6. ↑ मुस्कुराहट
7. ↑ उपदेशक
8. ↑ लड़खड़ाहटें




4-----------------------------



वो हमें जिस कदर आज़माते रहे

अपनी ही मुश्किलो को बढ़ाते रहे


थी कमाने तो हाथो में अब यार के

तीर अपनो की जानिब से आते रहे


आँखे सूखी हुई नदियाँ बन गई

और तूफ़ा बदस्तूर आते रहे


कर लिया सब ने हमसे किनारा मगर

एक नास-ए-गरीब आते जाते रहे


प्यार से उनका इंकार बरहक मगर

उनके लब किसलिए थरथराते रहे


याद करने पर भी दोस्त आए न याद

दोस्तो के करम याद आते रहे


बाद-ए-तौबा ये आलम रहा मुद्द्तो

हाथ बेजाम भी लब तक आते रहे


अल्लमा लफ़्जिशे यक तब्बसुम "खुमार"

ज़िन्दगी भर हम आँसू बहाते रहे


5----------------------------------

हाले-ग़म उन को सुनाते जाइए

शर्त ये है मुस्कुराते जाइए


आप को जाते न देखा जाएगा

शम्मअ को पहले बुझाते जाइए


शुक्रिया लुत्फ़े-मुसलसल का मगर

गाहे-गाहे दिल दुखाते जाइए


दुश्मनों से प्यार होता जाएगा

दोस्तों को आज़माते जाइए


रोशनी महदूद हो जिनकी 'ख़ुमार'

उन चराग़ों को बुझाते जाइए


6---------------------------------


सुना है वो हमें भुलाने लगे है

तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है


हटाए थे जो राह से दोस्तो की

तो पत्थर मेरे घर में आने लगे है


ये कहना थ उनसे मुहब्ब्त हौ मुझको

ये कहने मे मुझको ज़माने लगे है


कयामत यकीनन करीब आ गई है

"ख़ुमार" अब तो मस्ज़िद में जाने लगे है



7------------------------------

वो जो आए हयात याद आई

भूली बिसरी सी बात याद आई


कि हाल-ए-दिल उनसे कहके जब लौटे

उनसे कहने की बात याद आई


आपने दिन बना दिया था जिसे

ज़िन्दगी भर वो रात याद आई


तेरे दर से उठे ही थे कि हमें

तंगी-ए-कायनात याद आई



8--------------------------------

वो खफा है तो कोई बात नहीं

इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं


दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं

दिन हो रोशन तो रात रात नहीं


दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल

जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं


ऐसी भूली है कायनात मुझे

जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं


पीर की बस्ती जा रही है मगर

सबको ये वहम है कि रात नहीं


मेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"

और मैं लायक-ए-हयात नहीं


9--------------------------------


ये मिसरा नहीं है वज़ीफा मेरा है

खुदा है मुहब्बत, मुहब्बत खुदा है


कहूँ किस तरह में कि वो बेवफा है

मुझे उसकी मजबूरियों का पता है


हवा को बहुत सरकशी का नशा है

मगर ये न भूले दिया भी दिया है


मैं उससे ज़िदा हूँ, वो मुझ से ज़ुदा है

मुहब्बत के मारो का बज़्ल-ए-खुदा है


नज़र में है जलते मकानो मंज़र

चमकते है जुगनू तो दिल काँपता है


उन्हे भूलना या उन्हे याद करना

वो बिछड़े है जब से यही मशगला है


गुज़रता है हर शक्स चेहरा छुपाए

कोई राह में आईना रख गया है


कहाँ तू "खुमार" और कहाँ कुफ्र-ए-तौबा

तुझे पारशाओ ने बहका दिया है



10------------------------


ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है

कहाँ है ऐ ग़मे-जानाँ! कहाँ है


इक आँसू कह गया सब हाल दिल का

मैं समझा था ये ज़ालिम बेज़बाँ है


ख़ुदा महफ़ूज़ रखे आफ़तों से

कई दिन से तबीयत शादुमाँ है


वो काँटा है जो चुभ कर टूट जाए

मोहब्बत की बस इतनी दासताँ है


ये माना ज़िन्दगी फ़ानी है लेकिन

अगर आ जाए जीना, जाविदाँ है


सलामे-आख़िर अहले-अंजुमन को

'ख़ुमार' अब ख़त्म अपनी दास्ताँ है

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Wednesday, June 29, 2011

meri pyaari badi behen Seema gupta ki ek khoobsurat ghazal

ख्वाब जैसे ख्याल होते हैं
इश्क में ये कमाल होते हैं

एक नमूना हो ज़िन्दगी जिनकी
लोग वो बे मिसाल होते हैं

गम अजब हैं यहाँ सितारों के
चाँद को भी मलाल होते हैं

शब् की तनहाइयों में अक्सर ही
जलवा-गर सब ख्याल होते हैं

इश्क बर्बाद हो गया कैसे
हुस्न से ये सवाल होते हैं

उनकी फुरक़त में रात दिन "सीमा"
आजकल हम निढाल होते हैं

Monday, May 2, 2011

Janaab mohtram Mayank awasthi sahab ki behetreen ghazal

जब उसमें जोड़ के तुझको तुझे घटाते हैं
तेरे बयान का सच क्या है जान जाते हैं

ये संगे-मील, कहो, संगे-राह बन जाए
क़दम बढ़ाओ तो मंज़र बदल से जाते हैं

किसी का क़र्ज़ उतरने न देंगे इस दिल से
हरेक ज़ख्म को नासूर हम बनाते हैं

उदास दिल के शरारों को कहकशाँ कह के
ये आसमान हक़ीक़त कोई छिपाते हैं

ये नातवाँ करारी शिकस्त देता है
जब अपने दिल पे कोई ज़ोर आजमाते हैं

कभी मिली थी तिरी मंज़िले- मुराद कहीं
मेरे सफ़र में मराहिल तमाम आते हैं

नदी से प्यास बुझाएँ यही मुनासिब है
हम उसपे हर्फ़े-वफ़ा किसलिये बनाते हैं

खड़े थे दैरो -हरम उस गली के नुक्कड़ पे
जो साँकरी है मगर सरफ़रोश जाते हैं

Friday, March 25, 2011

ghazal by Dr. Asif husain on Tsunami

सुनामी

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बम और तोप गोले बनाने की है सजा

फोजों पे और फोज बढाने की है सजा





सच्चाई पे चले वही नेता बनाना था

नेता भी झूट वाले बनाने की है सजा





दौलत हराम खाए वही हो गया बड़ा

दफ्तर भी रिश्वतो से चलाने की सजा





रब ने मना किया था कि लड़ना नहीं यहाँ

आपस में आदमी को लड़ाने की है सजा





इंसान बाट बाट के क्या क्या बना लिया

इंसानियत पे चोट लगाने की है सज...

Thursday, March 24, 2011

Umda ghazal by dada ji Ahmar kashipuri

Raat hum se hi na kaati gayi tanhayi ki.
tere gham ne to badi housla afzayi ki

kya zarurat hai use anjuman araayi ki
aa gayi raas jise zindagi tanhayi ki

mujhko har haal me takmeel-e-safar karna hai
humnashino meri adat nahi paspaayi ki

ghalib-o-meer ke mansab ko na pahucha koi
yu to logo ne bahut kafiya paimayi ki

aap bhi mere ta-alluq se zabaa"n band rakhe
main bhi koshish na karu apki ruswayi ki

unke deedar se mehroom na reh jau kahi
ae khuda umr bada de meri binaayi ki

paishay-e-charagari kher ho teri lekin
rasm duniya se na uth jaye masihayi ki

gham ne dastak hi nahi di mere dar par AHMAR
balke bazabta tajdeed-e-shanasayi ki.

is ghazal par sabki khas tavajjo ki guzarish hai .shukriya

Wednesday, March 23, 2011

Ek sachchayi - ek tanz - ek zarurat - ek buraayi mere bahut azeez or bade bhai janaab Dr . Asif Husain ki kalam se

Aksar socha karta hun---------Mai hi sabse achha hun

Sabki sunta rehta hun---------Apne dil ki karta hun

Jinse matlab hota hai----------Unko apna kehta hun

Chhote rishtedaaro se---------Thodi doori rakhta hun

Unche naatedaaro se-----------Mai khud jaker milta hun

Jinpar rutba paisa ho-----------Unse yaari karta hun

Saathi hun mazloomo ka-------Zalim se bhi milta hun

Parwaale hai hairat me----------Itnaa uncha udhta hun

Haiwano si harkat hain----------Insaano sa dikhta hun

Rab se sabkuchh paya hai-------Phir bhi rota rehta hun

Saare rishte naate hain----------Lekin bilkul tanha hun

Sab achha ho jaayega-----------Ummido per zinda hun

Mai ASIF hun aisa hi------------Socho kya tum jaisa hun ?????

(dr asif husain)

Saturday, February 26, 2011

john elia pakistan

तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आई, क्या तू सचमुच आई है

शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उन की अँगड़ाई शरमाई है

उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास
जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है

हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुँचाना है
हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुँचाई है

हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़ ए रक़बत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है

हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच यह तू ने कैसी शक्ल बनाई है

इश्क़ ए पैचान की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है

हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है

आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की खुश्बू आई है

एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है

john elia pakistan - munfarid shayar

उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहाँ टालने से टलते हैं

मैं उसी तरह तो बहलता हूँ यारों
और जिस तरह बहलते हैं

वोह है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं

है उसे दूर का सफ़र दरपेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं

है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं

Wednesday, February 9, 2011

Ahmar kashipuri ki umda ghazal

Har chand kuch nahi hai magar kuch na kuch to he
ye inqlaab e shaam o seher kuch na kuch to he
tu husn dilnawaaz ka hamil sahi magar
mera bhi itekhab e nazar kuch na kuch to he
he dosto se mere kashida talluqaat
iski bhi dushmano ko khabar kuch na kuch to he
danishwaraan e sheher me ata he jiska naam
wo bhi junun ka zer e asar kuch na kuch to he
hum laakh be-niyaaz e mohabbat sahi magar
ye izteraab e qalb o nazar kuch na kuch to hai
chalti he thodi door har ek raahrou ke sath
ahmar ye gard e raah-guzar kuch na kuch to hai

Sunday, February 6, 2011

Ahmar kashipuri

Apne khoon me har admi tar tha.
sheher-e-gham ke ajeeb manzar tha
Jaam toota ke mera dil toota .
aaena aaena barabar tha
jaan kar tashna lab raha warna
mere age khula samandar tha
Jisko manzar samajh rahe the log
kuch nahi tha fareb e manzar tha
Kese meri giraft me ata.
wo to ek roshni ka paikar tha.
aake sehra me kiya mila ahmar.
esa mousam to khud mere ghar tha.

Friday, January 21, 2011

Ahmar kashipuri ki umda ghazal

Main apne ghar se rahu door ya rahu ghar me
likhi huyi hai udaasi mere muqaddar me
khyaal banke samaya hai kyu mere sir mai
wo admi jo nahi hai mere muqaddar me
na zinda chodega mujhko bhi umr ka sailaaab
main doob jaunga ek din isi samundar main
sila mujhko ye mila teergee se ladne ka
mere makaan me ujala na roshni-dar hai
ajab nahi ke koi yaadgaar ban jau
mujhe bhi dhaal de ae kash koi pathar mai.

Ashok chakradgar ki umda ghazal

तू गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है,
अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है।

तबाहियां तो किसी और की तलाश में थीं
कहां पता था उन्हें ये मकान तेरा है।

छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला,
ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है।

भुला दे अब तो भुला दे कि भूल किसकी थी
न भूल प्यारे कि हिन्दोस्तान तेरा है।

न बोलना है तो मत बोल ये तेरी मरज़ी
है, चुप्पियों में मुकम्मिल बयान तेरा है।

तू अपने देश के दर्पण में ख़ुद को देख ज़रा
सरापा जिस्म ही देदीप्यमान तेरा है।

हर एक चीज़ यहां की, तेरी है, तेरी है,
तेरी है क्योंकि सभी पर निशान तेरा है।

हो चाहे कोई भी तू, हो खड़ा सलीक़े से
ये फ़िल्मी गीत नहीं, राष्ट्रगान तेरा है।

Wednesday, January 19, 2011

Ahmar kashipuri

Hamare paas dil-e-daagdaar baqi hai
khuda ka shukr hai ek gham-gusaar baqi hai
nazar ko chain na dil ko qaraar baqi hai
hayaat phir bhi nahi tujhse pyaar baqi hai
wo ankh hu jisme me teri deed ki hai talab
wo dil hu jisme tera intezaar baqi hai

Monday, January 17, 2011

Iqbal Adeeb kashipuri ki umda ghazal .............

ye na ho ke mar jau or phir wo pachtaye
zindagi ko samjha do is tarha na tadpaye
dil ki baat poshida apne dil me rehne do
halka pan kahi zaahir apka na ho jaye
jiski ankh me aansu dil me gham ka toofan ho
us ke lab aye to kis tarha hasee aye
jis qadar bhi jee chahe zindagi sataye jaa
phir na jane kab shayad mujhsa koi mil jaye
keh do housla rakhe apne dil me ae "Iqbal"
gardhish-e-zamane se is tarha na ghabraye

Saturday, January 8, 2011

Dheeraj singh kafir

बासठ के हो गए हो
झुर्रियाँ देखी हैं आईने में कभी?

अब भी स्नो-पाउडर लगाते हो
नहीं रही वो तुम्हारी गोरी चिट्टी शकल

खाँसते बहुत हो
अब ये सिगार फूँकना बंद कर दो
सब कहने लगे हैं--
गंजा आ गया गंजा आ गया

Dheeraj singh kafir

दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज[1] मेरी माँ के थे
उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे

हरेक सिम्त[2] समेट दी कि हो जाऊँ कामराँ[3]
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे

अहल-ऐ-जहाँ[4]ओ ये पेंच-ओ-ख़म[5] का दम
मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ[6] के थे

जब तक वो न थी करीब, तो सब थे रकीब
हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ[7] के थे

आज तो दे रखीं हैं सौ दुकानें किराए पर
कल तक ख़रीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे

शब्दार्थ:

↑ खुशियाँ देने वाले कोमल हाथ
↑ दिशा
↑ सफल
↑ दुनियावाले
↑ दाँव-पेंच
↑ जुलूस
↑ डूबता सूरज

Sunday, January 2, 2011

Ismat zaidi

न डालो बोझ ज़हनों पर कि बचपन टूट जाते हैं
सिरे नाज़ुक हैं बंधन के जो अक्सर छूट जाते हैं

नहीं दहशत गरों का कोई मज़हब या कोई ईमाँ
ये वो शैताँ हैं, जो मासूम ख़ुशियाँ लूट जाते हैं

हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं

नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आँगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं, अपने छूट जाते हैं

न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है, घरौंदे टूट जाते हैं

’शेफ़ा’ आँखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं

Ismat zaidi

मेरे मालिक ख़यालों को मेरे
पाकीज़गी दे दे ,
मेरे जज़्बों को शिद्दत दे ,
मेरी फ़िकरों को वुस’अत दे,
मेरे एह्सास उस के हों ,
मेरे जज़बात उस के हों ,
जियूँ मैं जिस की ख़ातिर ,
बस वफ़ाएँ भी उसी की हों,

मेरे मा’बूद मुझ को,
ऐसी नज़रें तू अता कर दे
कि जब भी आँख ये उठे,
ख़ुलूस ओ प्यार ही छलके,
जिसे अपना कहा मैंने
उसे अपना बना भी लूँ,
मैं उस के सारे ग़म ले कर,
उसे ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ दूँ,

मेरे अल्लाह मुझ को ,
दौलत ओ ज़र की नहीं ख़्वाहिश,
नहीं अरमान मुझ को
रुत्ब ए आली के पाने का
अता कर ऐसी दौलत
जिस के ज़रिये, मैं
तेरे बंदों के काम आऊँ
मुझे ज़रिया बना कर
उन के अरमानों को पूरा कर
करम ये मुझ पे तू कर दे
मुझे तौफ़ीक़ ऐसी दे
कि तेरी राह पर चल कर
मैं मंज़िल तक पहुँच पाऊँ

Iqbaal adeeb kashipuri ka man-mohak andaaz-e-byaan (mere walid sahab )

unke hasee"n labo pe tabassum to dekhiye
naghma suna rahe hai tarannum to dekhiye
ek simt aadmi hai pareshaan bhook se
ek simt bepnaah gandum to dekhiye
shaydaayi kiyun na aap pe ho jaye har koi
aeena rakhkar apna tabassum to dekhiye
maqbool khud b khud mere ash-aar ho gaye
meri ghazal me unka tarannum to dekhiye

Dil shahjahapuri

मिट गया जब मिटाने वाला फिर सलाम आया तो क्या आया
दिल की बरबादी के बाद उन का पयाम आया तो क्या आया

छूट गईं नबज़ें उम्मीदें देने वाली हैं जवाब
अब उधर से नामाबर लेके पयाम आया तो क्या आया

आज ही मिलना था ए दिल हसरत-ए-दिलदार में
तू मेरी नाकामीयों के बाद काम आया तो क्या आया


काश अपनी ज़िन्दगी में हम ये मंज़र देखते
अब सर-ए-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या आया
[तुर्बत = मक़बरा; महशर = क़यामत; खिराम = चलने का तरीका]

सांस उखड़ी आस टूटी छा गया जब रंग-ए-यास
नामबार लाया तो क्या ख़त मेरे नाम आया तो क्या

मिल गया वो ख़ाक में जिस दिल में था अरमान-ए-दीद
अब कोई खुर्शीद-वश बाला-इ-बाम आया तो क्या आया
[खुर्शीद-वश = महबूब]

Saturday, January 1, 2011

Iqbaal adeeb kashipuri ka simple andaaz-e-byaan (mere walid sahab )

ujaadne pe jisko muttafiq zamana hai
usi chaman mai hamara bhi ashiyana hai
mere khuda kisi mushkil mai daal de mujhko
mujhe kuch apne azeezo ko azmaana hai
yaha koi kisi ki madad nahi karta
khud apni raah ka pathar mujhe hatana hai

Iqbaal adeeb kashipuri ka simple andaaz-e-byaan (mere walid sahab )

Is tarha gham hai khushi ke sath mai
jese kaatein ho kali ke sath mai
arzoo dil ko kisi ki thi magar
zindagi guzri kisi ke sath mai
gour se dekho to deepak ke tale
hai andhera roshni ke sath mai