Monday, August 29, 2011

Ghazal by Javed akhtar ,......

हमसे दिलचस्प कभी सच्चे नहीं होते है
अच्छे लगते है मगर अच्छे नहीं होते है

चाँद में बुढ़िया, बुजुर्गों में खुदा को देखें
भोले अब इतने तो ये बच्चे नहीं होते है

कोई याद आये हमें, कोई हमे याद करे
और सब होता है, ये किस्से नहीं होते है

कोई मंजिल हो, बहुत दूर ही होती है मगर
रास्ते वापसी के लम्बे नहीं होते है

आज तारीख[1] तो दोहराती है खुद को लेकिन
इसमें बेहतर जो थे वो हिस्से नहीं होते है |

Tuesday, August 16, 2011

Ghazal by me - Shariq siddiqui

ye meri ab tak ki doosri ghazal hai ........or pehla sher kisi khas ke liye hai ...


Mila hu ik ghazal jesi ....pari se.

...mohabbat ho gayi he shayari se.



jo gham paye he apni zindagi se.
byaan sab kar raha hu shayari se.



bahut gehra he ab shayad na toote.
taalluq gham ka meri ....zindagi se .



wo surat he ke shayad toot jaye.
taalluq aadmi ka ........aadmi se.



diye jo tum karoge din me roshan.
rahoge door shab bhar roshni se.



suna he gham bhi he naimat khuda ki.
mujhe manzoor he phir ye .khushi se.



main tumko chahta tha mil gaye tum.
main maangu or ab kya ...zindagi se.



dewanepann ki seema todd dunga.

mera wada he ye ab ....ashiqui se .

Tuesday, August 9, 2011

Ghazal by Manoj azhar sahab - Thakudwara

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यूँ तो ग़म की घटा ज़रा सी रहती है ,
बूंदा-बांदी . . .अच्छी-ख़ासी रहती है !

...ज़ख्म-ज़ख्म सौ चाँद उभरते रहते हैं ,
अपनी हर शब पूरनमासी रहती है !

तेरे शहर के सब मंज़र तो ताज़ा हैं ,
दिल की हालत बासी-बासी रहती है !

जिस्म का दरिया रूह से पूछा करता है..
''तू क्यूँ इतनी प्यासी-प्यासी रहती है?''

सबको खुश रखना इतना आसान नहीं ,
बड़े दिलों में . . . . .बड़ी उदासी रहती है !
.

- मनोज अज़हर.

Hello viewers

Khumaar sahab ki dil ko choo lene wali ghazale

MaiN sach kahooN to KHUMAR sahab se meri waaqfiyat kal hi hui hai aur uske baad mujhe behad ta'jjub aur hairat hui ki abhi tak maiN unke lajawab kalaam se mahroom kaise rah gaya, aaj maiN KHUMAR sahab ka kalaam paDhke dil se unka fan ho gaya hooN aur mujhe fakhr hota hai kya ghazab ki riwaayeti shaa'iri hai unki aur kya andaaz-e-bayaaN hai, aur tarannum aisa ki seedhe dil ki gahraaiyoN meiN utar ke halchal paida kar de. to lijiye pesh-e-khidmat haiN KHUMAR sahab ki chuninda ghazleiN:.


1--

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे

दो गुनहगार ज़हर खा बैठे


हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे

तीर मारे थे तीर खा बैठे


आंधियो जाओ अब आराम करो

हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे


जी तो हल्का हुआ मगर यारो

रो के हम लुत्फ़-ऐ-गम बढ़ा बैठे


बेसहारों का हौसला ही क्या

घर में घबराए दर पे आ बैठे


जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम

सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे


हम रहे मुब्तला-ऐ-दैर-ओ-हरम

वो दबे पाँव दिल में आ बैठे


उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान

रह गए सारे बावफ़ा बैठे


हश्र का दिन है अभी दूर 'ख़ुमार'

आप क्यों जाहिदों में जा बैठे

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2-------------------------------------

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही

जज़्बात में वो पहले-सी शिद्दत नहीं रही


सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा

दिल पर वो धड़कनों की हुक़ूमत नहीं रही


पैहम तवाफ़े-कूचा-ए-जानाँ के दिन गए

पैरों में चलने-फिरने की ताक़त नहीं रही


चेहरे की झुर्रियों ने भयानक बना दिया

आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही


कमज़ोरी-ए-निगाह ने संजीदा कर दिया

जलवों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही


अल्लाह जाने मौत कहाँ मर गई 'ख़ुमार'

अब मुझको ज़िन्दगी की ज़रूरत नहीं रही



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3-----------------------------------


हिज्र[1] की शब[2] है और उजाला है

क्या तसव्वुर[3] भी लुटने वाला है


ग़म तो है ऐन ज़िन्दगी लेकिन

ग़मगुसारों ने मार डाला है


इश्क़ मज़बूर-ओ-नामुराद सही

फिर भी ज़ालिम का बोल-बाला है


देख कर बर्क़[4] की परेशानी

आशियाँ[5] ख़ुद ही फूँक डाला है


कितने अश्कों को कितनी आहों को

इक तबस्सुम[6] में उसने ढाला है


तेरी बातों को मैंने ऐ वाइज़[7]

एहतरामन हँसी में टाला है


मौत आए तो दिन फिरें शायद

ज़िन्दगी ने तो मार डाला है


शेर नज़्में शगुफ़्तगी मस्ती

ग़म का जो रूप है निराला है


लग़्ज़िशें[8] मुस्कुराई हैं क्या-क्या

होश ने जब मुझे सँभाला है


दम अँधेरे में घुट रहा है "ख़ुमार"

और चारों तरफ उजाला है

शब्दार्थ:

1. ↑ जुदाई
2. ↑ रात
3. ↑ कल्पना
4. ↑ बिजली
5. ↑ घर , आशियाना
6. ↑ मुस्कुराहट
7. ↑ उपदेशक
8. ↑ लड़खड़ाहटें




4-----------------------------



वो हमें जिस कदर आज़माते रहे

अपनी ही मुश्किलो को बढ़ाते रहे


थी कमाने तो हाथो में अब यार के

तीर अपनो की जानिब से आते रहे


आँखे सूखी हुई नदियाँ बन गई

और तूफ़ा बदस्तूर आते रहे


कर लिया सब ने हमसे किनारा मगर

एक नास-ए-गरीब आते जाते रहे


प्यार से उनका इंकार बरहक मगर

उनके लब किसलिए थरथराते रहे


याद करने पर भी दोस्त आए न याद

दोस्तो के करम याद आते रहे


बाद-ए-तौबा ये आलम रहा मुद्द्तो

हाथ बेजाम भी लब तक आते रहे


अल्लमा लफ़्जिशे यक तब्बसुम "खुमार"

ज़िन्दगी भर हम आँसू बहाते रहे


5----------------------------------

हाले-ग़म उन को सुनाते जाइए

शर्त ये है मुस्कुराते जाइए


आप को जाते न देखा जाएगा

शम्मअ को पहले बुझाते जाइए


शुक्रिया लुत्फ़े-मुसलसल का मगर

गाहे-गाहे दिल दुखाते जाइए


दुश्मनों से प्यार होता जाएगा

दोस्तों को आज़माते जाइए


रोशनी महदूद हो जिनकी 'ख़ुमार'

उन चराग़ों को बुझाते जाइए


6---------------------------------


सुना है वो हमें भुलाने लगे है

तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है


हटाए थे जो राह से दोस्तो की

तो पत्थर मेरे घर में आने लगे है


ये कहना थ उनसे मुहब्ब्त हौ मुझको

ये कहने मे मुझको ज़माने लगे है


कयामत यकीनन करीब आ गई है

"ख़ुमार" अब तो मस्ज़िद में जाने लगे है



7------------------------------

वो जो आए हयात याद आई

भूली बिसरी सी बात याद आई


कि हाल-ए-दिल उनसे कहके जब लौटे

उनसे कहने की बात याद आई


आपने दिन बना दिया था जिसे

ज़िन्दगी भर वो रात याद आई


तेरे दर से उठे ही थे कि हमें

तंगी-ए-कायनात याद आई



8--------------------------------

वो खफा है तो कोई बात नहीं

इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं


दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं

दिन हो रोशन तो रात रात नहीं


दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल

जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं


ऐसी भूली है कायनात मुझे

जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं


पीर की बस्ती जा रही है मगर

सबको ये वहम है कि रात नहीं


मेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"

और मैं लायक-ए-हयात नहीं


9--------------------------------


ये मिसरा नहीं है वज़ीफा मेरा है

खुदा है मुहब्बत, मुहब्बत खुदा है


कहूँ किस तरह में कि वो बेवफा है

मुझे उसकी मजबूरियों का पता है


हवा को बहुत सरकशी का नशा है

मगर ये न भूले दिया भी दिया है


मैं उससे ज़िदा हूँ, वो मुझ से ज़ुदा है

मुहब्बत के मारो का बज़्ल-ए-खुदा है


नज़र में है जलते मकानो मंज़र

चमकते है जुगनू तो दिल काँपता है


उन्हे भूलना या उन्हे याद करना

वो बिछड़े है जब से यही मशगला है


गुज़रता है हर शक्स चेहरा छुपाए

कोई राह में आईना रख गया है


कहाँ तू "खुमार" और कहाँ कुफ्र-ए-तौबा

तुझे पारशाओ ने बहका दिया है



10------------------------


ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है

कहाँ है ऐ ग़मे-जानाँ! कहाँ है


इक आँसू कह गया सब हाल दिल का

मैं समझा था ये ज़ालिम बेज़बाँ है


ख़ुदा महफ़ूज़ रखे आफ़तों से

कई दिन से तबीयत शादुमाँ है


वो काँटा है जो चुभ कर टूट जाए

मोहब्बत की बस इतनी दासताँ है


ये माना ज़िन्दगी फ़ानी है लेकिन

अगर आ जाए जीना, जाविदाँ है


सलामे-आख़िर अहले-अंजुमन को

'ख़ुमार' अब ख़त्म अपनी दास्ताँ है

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