Friday, November 16, 2012

Mere bade bhai Janaab Faizuddin sahab ki ek nayaab ghazal



इलाही  तू  दुनिया  से  नफरत  मिटा  दे ..
ज़िया ए मोहब्बत  से  दिल  जगमगा  दे .

जले  कोई  दुलहन  ना  बेघर  हो  मां  अब,
हेर इक दिल  से  लालच  की  लानत  मिटा  दे

चलन  हो  मोहब्बत  का  हर  इक  नगर  में..
हों  मंदिर  ओ  मस्जिद  बराबर  नज़र  में,

किसी  को  ना शिकवा  गिला  हम  से  हो  कुछ,
तू  शाम  ए  मोहब्बत  को  दिल  में  जला  दे,

यतीमी  ना  छु  पाए  मासूम  को  अब,
मिलें  सारी  खुशियाँ  भी  महरूम  को  अब,

दुआ  है  येही  फैज़  की  तुझ  से  यारब
हर इक  हुक्मरान को  तू  मुखलिस  बना  दे
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फैज़ इलाहाबादी

Mere bade bhai Janaab Manu Bhardwaj Manu sahab ki ek khoobsurat ghazal ..

मेरी तारीफ़ करता जा रहा है 
खिलौनों से मुझे बहला रहा है 

 ग़मे-दिल तो कभी का भूल बैठे 
 हमें फिर क्या नया ग़म खा रहा है 

 शराफ़त पर मेरी ऊँगली उठाकर 
मेरा किरदार मारा जा रहा है 

 रहूँ मैं याद से भी दूर उसकी 
सितम ऐसे भी मुझपे ढा रहा है 

 मेरी ग़ज़लें हैं जे़रे-लब किसी के
 मेरे शे’रों को चूमा जा रहा है 

 न जाने प्यार कब मन्ज़ूर होगा 
अभी तक सिर्फ़ सोचा जा रहा है 

 ‘मनु’ बैठा है छत पर आज कागा 
कोई मेहमान शायद आ रहा है -


मनु भारद्वाज 'मनु'