Main apne ghar se rahu door ya rahu ghar me
likhi huyi hai udaasi mere muqaddar me
khyaal banke samaya hai kyu mere sir mai
wo admi jo nahi hai mere muqaddar me
na zinda chodega mujhko bhi umr ka sailaaab
main doob jaunga ek din isi samundar main
sila mujhko ye mila teergee se ladne ka
mere makaan me ujala na roshni-dar hai
ajab nahi ke koi yaadgaar ban jau
mujhe bhi dhaal de ae kash koi pathar mai.
Friday, January 21, 2011
Ashok chakradgar ki umda ghazal
तू गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है,
अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है।
तबाहियां तो किसी और की तलाश में थीं
कहां पता था उन्हें ये मकान तेरा है।
छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला,
ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है।
भुला दे अब तो भुला दे कि भूल किसकी थी
न भूल प्यारे कि हिन्दोस्तान तेरा है।
न बोलना है तो मत बोल ये तेरी मरज़ी
है, चुप्पियों में मुकम्मिल बयान तेरा है।
तू अपने देश के दर्पण में ख़ुद को देख ज़रा
सरापा जिस्म ही देदीप्यमान तेरा है।
हर एक चीज़ यहां की, तेरी है, तेरी है,
तेरी है क्योंकि सभी पर निशान तेरा है।
हो चाहे कोई भी तू, हो खड़ा सलीक़े से
ये फ़िल्मी गीत नहीं, राष्ट्रगान तेरा है।
अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है।
तबाहियां तो किसी और की तलाश में थीं
कहां पता था उन्हें ये मकान तेरा है।
छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला,
ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है।
भुला दे अब तो भुला दे कि भूल किसकी थी
न भूल प्यारे कि हिन्दोस्तान तेरा है।
न बोलना है तो मत बोल ये तेरी मरज़ी
है, चुप्पियों में मुकम्मिल बयान तेरा है।
तू अपने देश के दर्पण में ख़ुद को देख ज़रा
सरापा जिस्म ही देदीप्यमान तेरा है।
हर एक चीज़ यहां की, तेरी है, तेरी है,
तेरी है क्योंकि सभी पर निशान तेरा है।
हो चाहे कोई भी तू, हो खड़ा सलीक़े से
ये फ़िल्मी गीत नहीं, राष्ट्रगान तेरा है।
Wednesday, January 19, 2011
Ahmar kashipuri
Hamare paas dil-e-daagdaar baqi hai
khuda ka shukr hai ek gham-gusaar baqi hai
nazar ko chain na dil ko qaraar baqi hai
hayaat phir bhi nahi tujhse pyaar baqi hai
wo ankh hu jisme me teri deed ki hai talab
wo dil hu jisme tera intezaar baqi hai
khuda ka shukr hai ek gham-gusaar baqi hai
nazar ko chain na dil ko qaraar baqi hai
hayaat phir bhi nahi tujhse pyaar baqi hai
wo ankh hu jisme me teri deed ki hai talab
wo dil hu jisme tera intezaar baqi hai
Monday, January 17, 2011
Iqbal Adeeb kashipuri ki umda ghazal .............
ye na ho ke mar jau or phir wo pachtaye
zindagi ko samjha do is tarha na tadpaye
dil ki baat poshida apne dil me rehne do
halka pan kahi zaahir apka na ho jaye
jiski ankh me aansu dil me gham ka toofan ho
us ke lab aye to kis tarha hasee aye
jis qadar bhi jee chahe zindagi sataye jaa
phir na jane kab shayad mujhsa koi mil jaye
keh do housla rakhe apne dil me ae "Iqbal"
gardhish-e-zamane se is tarha na ghabraye
zindagi ko samjha do is tarha na tadpaye
dil ki baat poshida apne dil me rehne do
halka pan kahi zaahir apka na ho jaye
jiski ankh me aansu dil me gham ka toofan ho
us ke lab aye to kis tarha hasee aye
jis qadar bhi jee chahe zindagi sataye jaa
phir na jane kab shayad mujhsa koi mil jaye
keh do housla rakhe apne dil me ae "Iqbal"
gardhish-e-zamane se is tarha na ghabraye
Wednesday, January 12, 2011
Iqbal adeeb ka ek umda sher
sabhi ke waaste paighame zindagi bankar
hum aa gaye hai andhero me roshni bankar
hum aa gaye hai andhero me roshni bankar
Saturday, January 8, 2011
Dheeraj singh kafir
बासठ के हो गए हो
झुर्रियाँ देखी हैं आईने में कभी?
अब भी स्नो-पाउडर लगाते हो
नहीं रही वो तुम्हारी गोरी चिट्टी शकल
खाँसते बहुत हो
अब ये सिगार फूँकना बंद कर दो
सब कहने लगे हैं--
गंजा आ गया गंजा आ गया
झुर्रियाँ देखी हैं आईने में कभी?
अब भी स्नो-पाउडर लगाते हो
नहीं रही वो तुम्हारी गोरी चिट्टी शकल
खाँसते बहुत हो
अब ये सिगार फूँकना बंद कर दो
सब कहने लगे हैं--
गंजा आ गया गंजा आ गया
Dheeraj singh kafir
दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज[1] मेरी माँ के थे
उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे
हरेक सिम्त[2] समेट दी कि हो जाऊँ कामराँ[3]
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे
अहल-ऐ-जहाँ[4]ओ ये पेंच-ओ-ख़म[5] का दम
मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ[6] के थे
जब तक वो न थी करीब, तो सब थे रकीब
हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ[7] के थे
आज तो दे रखीं हैं सौ दुकानें किराए पर
कल तक ख़रीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे
शब्दार्थ:
↑ खुशियाँ देने वाले कोमल हाथ
↑ दिशा
↑ सफल
↑ दुनियावाले
↑ दाँव-पेंच
↑ जुलूस
↑ डूबता सूरज
उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे
हरेक सिम्त[2] समेट दी कि हो जाऊँ कामराँ[3]
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे
अहल-ऐ-जहाँ[4]ओ ये पेंच-ओ-ख़म[5] का दम
मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ[6] के थे
जब तक वो न थी करीब, तो सब थे रकीब
हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ[7] के थे
आज तो दे रखीं हैं सौ दुकानें किराए पर
कल तक ख़रीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे
शब्दार्थ:
↑ खुशियाँ देने वाले कोमल हाथ
↑ दिशा
↑ सफल
↑ दुनियावाले
↑ दाँव-पेंच
↑ जुलूस
↑ डूबता सूरज
Sunday, January 2, 2011
Ismat zaidi
न डालो बोझ ज़हनों पर कि बचपन टूट जाते हैं
सिरे नाज़ुक हैं बंधन के जो अक्सर छूट जाते हैं
नहीं दहशत गरों का कोई मज़हब या कोई ईमाँ
ये वो शैताँ हैं, जो मासूम ख़ुशियाँ लूट जाते हैं
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आँगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं, अपने छूट जाते हैं
न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है, घरौंदे टूट जाते हैं
’शेफ़ा’ आँखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं
सिरे नाज़ुक हैं बंधन के जो अक्सर छूट जाते हैं
नहीं दहशत गरों का कोई मज़हब या कोई ईमाँ
ये वो शैताँ हैं, जो मासूम ख़ुशियाँ लूट जाते हैं
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आँगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं, अपने छूट जाते हैं
न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है, घरौंदे टूट जाते हैं
’शेफ़ा’ आँखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं
Ismat zaidi
मेरे मालिक ख़यालों को मेरे
पाकीज़गी दे दे ,
मेरे जज़्बों को शिद्दत दे ,
मेरी फ़िकरों को वुस’अत दे,
मेरे एह्सास उस के हों ,
मेरे जज़बात उस के हों ,
जियूँ मैं जिस की ख़ातिर ,
बस वफ़ाएँ भी उसी की हों,
मेरे मा’बूद मुझ को,
ऐसी नज़रें तू अता कर दे
कि जब भी आँख ये उठे,
ख़ुलूस ओ प्यार ही छलके,
जिसे अपना कहा मैंने
उसे अपना बना भी लूँ,
मैं उस के सारे ग़म ले कर,
उसे ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ दूँ,
मेरे अल्लाह मुझ को ,
दौलत ओ ज़र की नहीं ख़्वाहिश,
नहीं अरमान मुझ को
रुत्ब ए आली के पाने का
अता कर ऐसी दौलत
जिस के ज़रिये, मैं
तेरे बंदों के काम आऊँ
मुझे ज़रिया बना कर
उन के अरमानों को पूरा कर
करम ये मुझ पे तू कर दे
मुझे तौफ़ीक़ ऐसी दे
कि तेरी राह पर चल कर
मैं मंज़िल तक पहुँच पाऊँ
पाकीज़गी दे दे ,
मेरे जज़्बों को शिद्दत दे ,
मेरी फ़िकरों को वुस’अत दे,
मेरे एह्सास उस के हों ,
मेरे जज़बात उस के हों ,
जियूँ मैं जिस की ख़ातिर ,
बस वफ़ाएँ भी उसी की हों,
मेरे मा’बूद मुझ को,
ऐसी नज़रें तू अता कर दे
कि जब भी आँख ये उठे,
ख़ुलूस ओ प्यार ही छलके,
जिसे अपना कहा मैंने
उसे अपना बना भी लूँ,
मैं उस के सारे ग़म ले कर,
उसे ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ दूँ,
मेरे अल्लाह मुझ को ,
दौलत ओ ज़र की नहीं ख़्वाहिश,
नहीं अरमान मुझ को
रुत्ब ए आली के पाने का
अता कर ऐसी दौलत
जिस के ज़रिये, मैं
तेरे बंदों के काम आऊँ
मुझे ज़रिया बना कर
उन के अरमानों को पूरा कर
करम ये मुझ पे तू कर दे
मुझे तौफ़ीक़ ऐसी दे
कि तेरी राह पर चल कर
मैं मंज़िल तक पहुँच पाऊँ
Iqbaal adeeb kashipuri ka man-mohak andaaz-e-byaan (mere walid sahab )
unke hasee"n labo pe tabassum to dekhiye
naghma suna rahe hai tarannum to dekhiye
ek simt aadmi hai pareshaan bhook se
ek simt bepnaah gandum to dekhiye
shaydaayi kiyun na aap pe ho jaye har koi
aeena rakhkar apna tabassum to dekhiye
maqbool khud b khud mere ash-aar ho gaye
meri ghazal me unka tarannum to dekhiye
naghma suna rahe hai tarannum to dekhiye
ek simt aadmi hai pareshaan bhook se
ek simt bepnaah gandum to dekhiye
shaydaayi kiyun na aap pe ho jaye har koi
aeena rakhkar apna tabassum to dekhiye
maqbool khud b khud mere ash-aar ho gaye
meri ghazal me unka tarannum to dekhiye
Dil shahjahapuri
मिट गया जब मिटाने वाला फिर सलाम आया तो क्या आया
दिल की बरबादी के बाद उन का पयाम आया तो क्या आया
छूट गईं नबज़ें उम्मीदें देने वाली हैं जवाब
अब उधर से नामाबर लेके पयाम आया तो क्या आया
आज ही मिलना था ए दिल हसरत-ए-दिलदार में
तू मेरी नाकामीयों के बाद काम आया तो क्या आया
काश अपनी ज़िन्दगी में हम ये मंज़र देखते
अब सर-ए-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या आया
[तुर्बत = मक़बरा; महशर = क़यामत; खिराम = चलने का तरीका]
सांस उखड़ी आस टूटी छा गया जब रंग-ए-यास
नामबार लाया तो क्या ख़त मेरे नाम आया तो क्या
मिल गया वो ख़ाक में जिस दिल में था अरमान-ए-दीद
अब कोई खुर्शीद-वश बाला-इ-बाम आया तो क्या आया
[खुर्शीद-वश = महबूब]
दिल की बरबादी के बाद उन का पयाम आया तो क्या आया
छूट गईं नबज़ें उम्मीदें देने वाली हैं जवाब
अब उधर से नामाबर लेके पयाम आया तो क्या आया
आज ही मिलना था ए दिल हसरत-ए-दिलदार में
तू मेरी नाकामीयों के बाद काम आया तो क्या आया
काश अपनी ज़िन्दगी में हम ये मंज़र देखते
अब सर-ए-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या आया
[तुर्बत = मक़बरा; महशर = क़यामत; खिराम = चलने का तरीका]
सांस उखड़ी आस टूटी छा गया जब रंग-ए-यास
नामबार लाया तो क्या ख़त मेरे नाम आया तो क्या
मिल गया वो ख़ाक में जिस दिल में था अरमान-ए-दीद
अब कोई खुर्शीद-वश बाला-इ-बाम आया तो क्या आया
[खुर्शीद-वश = महबूब]
Saturday, January 1, 2011
Iqbaal adeeb kashipuri ka simple andaaz-e-byaan (mere walid sahab )
ujaadne pe jisko muttafiq zamana hai
usi chaman mai hamara bhi ashiyana hai
mere khuda kisi mushkil mai daal de mujhko
mujhe kuch apne azeezo ko azmaana hai
yaha koi kisi ki madad nahi karta
khud apni raah ka pathar mujhe hatana hai
usi chaman mai hamara bhi ashiyana hai
mere khuda kisi mushkil mai daal de mujhko
mujhe kuch apne azeezo ko azmaana hai
yaha koi kisi ki madad nahi karta
khud apni raah ka pathar mujhe hatana hai
Iqbaal adeeb kashipuri ka simple andaaz-e-byaan (mere walid sahab )
Is tarha gham hai khushi ke sath mai
jese kaatein ho kali ke sath mai
arzoo dil ko kisi ki thi magar
zindagi guzri kisi ke sath mai
gour se dekho to deepak ke tale
hai andhera roshni ke sath mai
jese kaatein ho kali ke sath mai
arzoo dil ko kisi ki thi magar
zindagi guzri kisi ke sath mai
gour se dekho to deepak ke tale
hai andhera roshni ke sath mai
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