इलाही तू दुनिया से नफरत मिटा दे ..
ज़िया ए मोहब्बत से दिल जगमगा दे .
जले कोई दुलहन ना बेघर हो मां अब,
हेर इक दिल से लालच की लानत मिटा दे
चलन हो मोहब्बत का हर इक नगर में..
हों मंदिर ओ मस्जिद बराबर नज़र में,
किसी को ना शिकवा गिला हम से हो कुछ,
तू शाम ए मोहब्बत को दिल में जला दे,
यतीमी ना छु पाए मासूम को अब,
मिलें सारी खुशियाँ भी महरूम को अब,
दुआ है येही फैज़ की तुझ से यारब
हर इक हुक्मरान को तू मुखलिस बना दे
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फैज़ इलाहाबादी