Ahmar Kashipuri
अपनी रुदाद सुनाती हुई तसवीरें हैं
मेरे अशआर को अशआर समझने वालो
यह मेरे खून से लिख्खी हुई तहरीरें हैं
जाने कब तेज़ हवा किस को उड़ा लेजाये
हम सभी फर्श पे बिखरी हुई तस्वीरें हैं
ज़हन आज़ाद है हर क़ैद से अब भी मेरा
लाख कहने को मेरे पाँव में ज़न्जीरें हैं
ज़िन्दगी हम को वहां लाई है अहमर के जहाँ
जुर्म ही जुर्म है ताज़ीरें ही ताज़ीरें हैं tazeere = saza,,punishment
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