Iqbal Adeeb Kashipuri
अक्सर गमों की आँच से पतथर पिघल गये''
एक शम्मा तू है तेरी हवस ही नहीं मिटी'
परवाने बेशुमार तेरी लौ में जल गये''
राहे वफा में वह भी मेरे साथ थे मगर'
एक मोड़ एसा आया के रस्ते बदल गये''
जज़्बा तेरी तलाश का इतना अजीब था'
हम मनजिलों की हद से भी आगे निकल गये''
इक़बाल तेरी याद ने जब से पनाह दी'
तन्हाइयो की केद से बाहर निकल गये''
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