Sunday, December 12, 2010

Allama Iqbal

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आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें वो सब क चह-चहाना



आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोँसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना



लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसूओं पर कलियों का मुस्कुराना



वो प्यारी प्यारी सूरत, वो कामिनी सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना

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