Monday, December 27, 2010

ghzal by Yagana changezi

आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।

सुबहदम देखकर गुलों का निखार॥

दूर से देख लो हसीनों को।

न बनाना कभी गले का हार॥


अपने ही साये से भड़कते हो।

ऐसी वहशत पै क्यों न आए प्यार॥


तू भी जी और मुझे भी जीने दे।

जैसे आबाद गुल से पहलू-ए-ख़ार॥


बेनियाज़ी भली कि बेअदबी।

लड़खडा़ती ज़बाँ से शिकवये-यार॥


बन्दगी का सबूत दूँ क्योंकर।

इससे बहतर है कीजिये इन्कार॥


ऐसे दो दिल भी कम मिले होंगे।

न कशाकश हुई न जीत न हार॥

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