Tuesday, December 28, 2010

sheen qaaf nizaam

खुद हूं तमाशा खुद ही तमाशाईयों में हूं
जब से सुना है मैं तिरे शैदाईयों में हूं

गैराईयों में हूं कभी गहराईयों में हूं
रोजे-अजल से आंखो की अंगनाइयों में हूं

इक-इक नफस के साथ जला जिस के वास्ते
उस का ख्याल है कि मैं हरजाइयों में हूं

ऐवाने-ख्वाब छोड़ के निकला हूं जब से मैं
सांसो की गूंजती हुई शहनाईयों में हूं

अन्धे कुएं से अन्धे कुएं में गिरा दिया
सोचा नही कि मैं भी तिरे भाईयों में हूं

फूटे है अंग-अंग से तेरे मिरा ही रंग
मैं ही तो तेरी टूटती अंगडाइयों में हूं

कहता है वो कि तुझ से अलग मैं कहाँ ‘निजाम’
तन्हाइयों में था तिरी रूसवाइयों में हूं

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