Friday, December 17, 2010

Ghazal by janaab Javed akhtar

ये तसल्ली है कि हैं नाशाद[1] सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब

सब की ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब

भूलके सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ सबको होगा याद सब

सब को दावा-ए-वफ़ा सबको यक़ीं
इस अदकारी में हैं उस्ताद सब

शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब

चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब

तल्ख़ियाँ[2] कैसे न हों अशआर में
हम पे जो गुज़री हमें है याद सब

शब्दार्थ:

↑ नाखुश
↑ कड़वाहटें

1 comment:

  1. Uljhan se bhadi hai meri zindgi
    aur uljhan badhaane se kya fayda
    log kahte bahut to suna deti hu
    warna gazle sunnane se kya fayda

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