Friday, December 31, 2010

jaan nisaar akhtar

रुखों के चांद, लबों के गुलाब मांगे है
बदन की प्यास, बदन की शराब मांगे है


मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया
तेरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे है


मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई
मेरे सवाल का मुझसे जवाब मांगे है


दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है
हर एक दर्द से जीने की ताब मांगे है


बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब मांगे है

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