Thursday, December 2, 2010

Ghazal by my dady ji janab Iqbaal adeeb kashipuri

Iqbal Adeeb Kashipuri

हैरत नहीं जो आपके आँसू निकल गये'
अक्सर गमों की आँच से पतथर पिघल गये''
एक शम्‍मा तू है तेरी हवस ही नहीं मिटी'
परवाने बेशुमार तेरी लौ में जल गये''
राहे वफा में वह भी मेरे साथ थे मगर'
एक मोड़ एसा आया के रस्ते बदल गये''
जज़्बा तेरी तलाश का इतना अजीब था'
हम मनजिलों की हद से भी आगे निकल गये''
इक़बाल तेरी याद ने जब से पनाह दी'
तन्हाइयो की केद से बाहर निकल गये''

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